राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती
परिवर्तन सुभद्रा कुमारी चौहान
(१)
ठाकुर खेतसिंह, इस नाम को सुनते ही लोगों के मुँह पर घृणा और प्रतिहिंसा के भाव जागृत हो जाते थे । किन्तु उनके सामने किसी को उनके खिलाफ़ चूं करने की भी हिम्मत न पड़ती। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी रूप से कोई ठाकुर खेतसिंह के विरुद्ध एक तिनका न हिला सकता था। खुले तौर पर उनके विरुद्ध कुछ भी कह देना कोई मामूली बात न थी। दो-चार शब्द कह कर कोई ठोकुर साहब का तो कुछ न बिगड़ सकता परन्तु अपनी आफ़त अवश्य बुला लेता था।
एक बार इस प्रकार ठाकुर साहब के किसी कृत्य पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए मैकू अहीर ने कहा कि "हैं तो इतने बड़े आदमी पर काम ऐसे करते हैं कि कमीन भी करते लजायगा ।" बस, इतना कहना था कि बात नमक-मिर्च लग कर ठाकुर साहब के पास पहुँच गई और बिचारे मैकू की शामत आ गई। दूसरे दिन ड्योढ़ी पर मैकू बुलाया गया। दरवाजा बन्द करके भीतर ठाकुर साहब ने मैकू की खुब मरम्मत करवाई और साथ ही यह ताकीद भी कर दी गई कि यदि इसकी ख़बर ज़रा भी बाहर गई तो वह इस बार गोली का ही निशाना बनेगा । मैकू तो यह ज़हर का सा घूंट पीकर रह गया, किन्तु मैकू की स्त्री सुखिया से न रहा गया; उसने दस-बीस खरी-खोटी बककर ही अपने दिल के फफोले फोड़े किन्तु यह तो असम्भव था कि सुखिया दस-बीस खरी-खोटी सुना जाय और ठाकुर साहब को इसकी खबर न लगे।
नतीजा यह हुआ कि उसी दिन रात को मैकू के-झोपड़े में आग लग गई और उसकी गेहूँ की लहलहाती हुई फसल घोड़ों से कुचलवा दी गई। दूसरे दिन बेचारे मैकू को बोरिया-बँधना बाँध कर वह गाँव ही छोड़ देना पड़ा।